Thursday, December 23, 2021

जब सरकार गायब होने के लिए पैसा खर्च करती है....



जो लोग नहीं जानते हैं उनके लिए « Le Monde Diplomatique » हाथों की उंगलियोंपर गिना जा सके ऐसे कुछ स्वतंत्र फ्रांसीसी पत्रिकाओं में से एक है। उनके नवंबर २०२१ के संस्करण में मैंने एक बहुत ही जानकारीपूर्ण लेख पढ़ा जिसका शीर्षक था “Quand l’Etat paie pour disparaître” (जब सरकार गायब होने के लिए पैसा खर्च करती है) [1] इस लेख में चर्चा की गई है कि किस तरह फ़्रांसीसी सरकार अपनी कई सार्वजनिक सेवाओंकी पूर्ति के लिए ठेकेदारोंको (सलाहकार और सेवा कंपनियों), "बेहतर गुणवत्ता, अधिक लचीलापन और कम लागत के लिए" काम पर रखकर इन सेवाओं को नुकसान पहुँचाती है। यहाँ इस लेख का संक्षिप्त सारांश दिया गया है ...

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और निजीकरण की परिधि 

सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने के लिए बाहरी या निजी संस्थाओं को काम पर रखने की प्रथा फ्रांसीसी राजतन्त्र के काल से है। उदाहरण के लिए, १७ वीं शताब्दी में फ्रांसीसी राजतन्त्र जल-परिवहन नहरों के निर्माण के लिए निजी कंपनियों पर निर्भर थी। १९ वीं सदी में रेलवे, सड़क की बत्तियाँ, पेयजल आपूर्ति आदि जैसी सेवाएं ठेकेदारों द्वारा प्रदान की जाती थीं।

इस झुकाव ने १९३० और १९५० के दशक में एक मोड़ लिया जब नई, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने बिजली ग्रिड, गैस, रेलवे आदि जैसी सेवाओं के प्रशासन और विपणन को अपने हाथ में ले लिया। हालांकि, १९७० के दशक में अमेरिका और इंग्लैंड में लोकप्रिय « New Public Management » की विचारधारा से प्रेरित होकर १९८० के दशक में फ्रांस में निजीकरण का पुनरुद्धार हुआ। इस नीति को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला लोकप्रिय शब्द "राज्य सुधार" (State Reforms) था। इनमें १९९७ से Air France और राजपथ (Highway) जैसी प्रमुख निजीकरण परियोजनाएं शामिल हैं। साथ ही राष्ट्रपति Nicolas Sarkozy (२००७-२०१२) के चुनावी घोषणापत्र वादा; "दो सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारियों के बदले केवल एक ही नयी भर्ती" का कार्यान्वयन भी शामिल है।

अमेरिकी परामर्श कार्य (Consulting) कम्पनियोंका का प्रभुत्व  

पिछले कुछ वर्षों में, फ्रांसीसी सरकार ने कई अंतरराष्ट्रीय और विशेष रूप से बड़ी अमेरिकी कंपनियों जैसे McKinsey & Company और Boston Consulting Group (BCG) को प्राथमिकता दी है। दरअसल, अतीत में ये कंपनियां बिना मजबूत प्रशासनवाले देशों को अपनी सेवाएं देती थीं। हालांकि फ्रांस में शुरुआत में इनका अनिच्छुकता से स्वागत हुआ, सार्वजनिक क्षेत्र में निजी परामर्श फर्मों की उपस्थिति अब आम हो गई है। उनकी मुख्य गतिविधियों में राज्य अभियानों के लिए नीतियों और कार्य योजनाओं का मसौदा तैयार करना, कानूनों का मसौदा तैयार करना, चालक अनुज्ञा पत्र (driving license) सुधार से संबंधित कार्य, सैन्य कर्मियों के वेतन के लिए उपयोग किए जाने वाले सॉफ़्टवेयर का बदलाव, मास्क की खरीद और टीकाकरण अभियानों का संगठन शामिल हैं।

राजकोष पर भारी बोझ

वित्तीय वर्ष २०१९ के लिए फ्रांसीसी सरकार ने निजी परामर्श कम्पनियोंपर खर्च की गई राशि, जिसमे स्थानीय नगर पालिकाओं और सार्वजनिक अस्पतालों द्वारा दिए गए अनुबंध शामिल है, १६० बिलियन यूरो इतनी है [2] यह रकम GDP [Gross Domestic Product - सकल घरेलू उत्पाद] का % या वार्षिक राष्ट्रीय बजट का २५% है! इस राशि का दो तिहाई हिस्सा सार्वजनिक परिवहन, जल प्रबंधन आदि सार्वजनिक सेवाओं के वितरण पर खर्च किया गया, जबकि शेष राशि में विशेषज्ञ सलाह, प्रबंधन, स्वच्छता आदि जैसी सेवाएं शामिल हैं। हालाँकि इतनी बड़ी राशि कभी भी सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं रही है और यह जानकारी संसद सदस्यों को भी उपलब्ध नहीं कराई गई है। उल्लेखनीय है कि जब की फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव अप्रैल २०२२ में होना है लेकिन यह अभी तक चुनाव का विषय नहीं बना है। 

इसके अलावा, सार्वजनिक कंपनियों को ठेकेदारों की सेवाओं के लिए २० % वैट का भुगतान करना पड़ता है [2]। यह लागत आंतरिक रूप से निर्मित सार्वजनिक सेवाओं पर लागू नहीं होती है। निजी संगठनों को अपनाने से अक्सर "ज्ञान हस्तांतरण" (knowledge transfer) की लागत आती है [2]। इसके अलावा, ऐसे उदाहरण हैं जहां विभिन्न क्षेत्रों में सार्वजनिक कम्पनियाँ अपने कौशल और विशेषज्ञ कर्मचारियों का उपयोग आपस में कर सकती हैं। लेकिन निजी क्षेत्र को अपनाने से ये संभव नहीं हो पाता [2]

निष्कर्ष

  • स्वास्थ्य, सुरक्षा और प्रशासन जैसे प्रमुख विभागों के लिए निजी सलाहकार निकायों का उपयोग सरकारी स्वायत्तता और स्वतंत्रता को कमजोर करता है। नतीजतन केवल ये विभाग बल्कि सरकार भी बहुमूल्य जानकारी, अनुभवी कर्मचारी और रणनीतिक दृष्टि खो देती है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की सरकारद्वारा जानबूझकर की गई उपेक्षा और इसे अपनी मूल कौशलयोंसे वंचित करने से इसकी निजी क्षेत्र को सौंपे गए कार्यों की देखरेख करने की क्षमता (तकनीकी और प्रबंधकीय दोनों) बाधित होती है। नतीजतन नागरिकों को घटिया और अक्षम सेवाएं प्राप्त होती हैं। 
  • सार्वजनिक कंपनियों को ठेकेदारों की सेवाओं के लिए २० % वैट का भुगतान करना पड़ता है। निजी संगठनों को अपनाने से अक्सर "ज्ञान हस्तांतरण" (knowledge transfer) की लागत आती है और इसके अलावा सार्वजनिक कंपनियोंको आपस में अपने कौशल और विशेषज्ञ कर्मचारियों का उपयोग करना असंभव हो जाता है।

  • अधिकांश सेवाओं के लिए नागरिक विदेशों में काम कर रहे ग्राहक सेवा केंद्र के कर्मचारियों के संपर्क में रहते हैं और उन्हें विदेशी उप-ठेकेदारों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं से निपटना होतो है। इसमें नागरिकों को आवश्यक सेवाएं प्रदान करने के लिए अक्सर जिम्मेदार निर्णयकर्ताओंकी कमी होती है।
  • निजी, मध्यस्थ संस्थानों पर अत्यधिक निर्भरता सार्वजनिक क्षेत्र के कामकाज और जवाबदेही में बहुत बाधा डालती है। इससे कर्मचारियों की प्रेरणा (motivation) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • निजी ठेकेदारों के माध्यम से सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने के निर्णय के तकनीकी और अर्थसंकल्पीय ऐसे दोनों परिणाम हैं। जिससे प्रारंभिक स्थिति में वापस आना बेहद कठिन हो जाता है। वास्तव में, एक बार किसी विशेष सेवा के लिए अर्थसंकल्प में कटौती करके ठेकेदारों का चयन कर लिया गया तो इस स्थिति को उलटना और इसके लिए भविष्य के अर्थसंकल्प में और अधिक धनराशि नियोजित करना लगभग असंभव हो जाता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को "पुन:-आंतरिक" करने के लिए तकनीकी जानकारी और कौशल को अक्सर खरोंच से पुनर्निर्माण करने की आवश्यकता होती है। यह सरकार के लिए बहुत बड़ी क्षति होती है। यदि अनुबंध १०, १५ या कुछ मामलों में ४० वर्ष पुराना है तो यह कार्य अधिक जटिल हो जाता है।

संदर्भ :

[1] https://www.monde-diplomatique.fr/2021/11/BONTEMPS/64030

[2] «160 Md€ d’externalisation par an : comment la puissance publique sape sa capacité d’agir [https://lib.umso.co/lib_ufoFEvhlRMwflNFx/6qxn1ssrizzmsk3b.pdf]» (PDF), Nos services publics, avril 2021.

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