फ़्रांस यूरोपीय संघ में अग्रणी
कृषि शक्ति होने के बावजूद,
हर साल उसका एक तिहाई आहार बर्बाद हो जाता है। फ़्रांस में "खाद्य बर्बादी
विरोधी" कानून हैं,
लेकिन वे सुपरमार्केट के खपत के लिए आक्रामक उकसावे का सामना करने में असमर्थ
साबित हो रहे हैं। सितंबर २०२१ में Le Monde Diplomatique में प्रकाशित एक लेख का यह सारांश है [1] ।
फ्रांस, यूरोपीय संघ में एक प्रमुख कृषि
शक्ति
फ्रांस यूरोप के कुल कृषि उत्पादन
का लगभग २०% उत्पादन करता है। अनाज, चीनी, दूध उत्पाद, मांस आदि। यह देश
अतिरिक्त उत्पादन करके इन चीजोंका निर्यात करता है। फ्रांस जैविक खेती में भी
अग्रणी है। फ्रांस का यूरोप में दूसरा सबसे बड़ा जैविक कृषि क्षेत्र है। इसके
अलावा, इसका कुशल परिवहन और
वितरण संजाल (network) देश के सभी
क्षेत्रों को जोड़ता है।
33% कृषि उत्पादन बर्बाद
फ्रांस हर साल १० मिलियन टन
अन्नसामग्री बर्बाद करता है। दूसरे शब्दों
में, कृषि उपज का एक तिहाई हिस्सा खेत और भोजन की थाली के बीच कहीं बर्बाद हो जाता
है। जिन खाद्य पदार्थों की कीमतें गिर गई हैं उन्हें कूड़ेदान में फेंक दिया जाता
है, साथ ही खराब होने वाले या बिना बिके खाद्य पदार्थ भी। इकोलॉजिकल ट्रान्झिशन
एजन्सीनुसार (Ecological Transition Agency) के अनुसार, अन्न के खराब होने की जिम्मेदारी इस प्रकार है: उत्पादक (३२%), संसाधक (२१%), वितरक (१४%) और उपभोक्ता (३३%)। फ्रांस में, हर साल, एक उपभोक्ता औसतन ३०
किलोग्राम भोजन बर्बाद करता हैं। इस अपव्यय से सालाना १६ अरब यूरो का नुकसान होता
है। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण, इस बर्बाद हुए अन्न के लिए बहुत
सारे संसाधन - भूमि, तेल, पानी - का अनावश्यक रूप से कूड़ा उत्पादन, परिवहन और प्रसंस्करण
(processing) के लिए बेकार में उपयोग किया
जाता है।
खाद्य पदार्थ खरीद के लिए
सुपरमार्केटों का आक्रामक प्रोत्साहन
हर साल २० अरब मुद्रित पत्रिका
नागरिकों के घरों में भेजे जाते हैं: खरीदे गए दूसरे सामान पर ५०% छूट, तुरंत ३०% छूट, दो सेट पर २०% छूट, २ खरीदें और १
निःशुल्क प्राप्त करें, अंतिम बिल पर १०% छूट
- मंगलवार से रविवार तक। हलाकि सुपरमार्केट कागज के इस विशाल अपव्यय (प्रति
व्यक्ति प्रति वर्ष ४० किलो) का समर्थन करते हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि लगभग ५०% फ्रांसीसी लोग इन विज्ञापन पत्रिकाओं को
पढ़ते हैं, और उनमें से एक तिहाई इन्हे पढ़कर अपनी खरीद तय करते हैं [2]। यह विज्ञापन छोटे
बच्चों को भी निशाना बनाता है। बच्चे खाद्य पदार्थोंके विज्ञापनों से और विशेष रूप
से वीडियो से आसानी से आकर्षित होते हैं। २०१६ में पारित गैटोलिन कानून (Gattolin law), सरकारी टेलीविजन पर बच्चों के कार्यक्रमों के दौरान व्यावसायिक विज्ञापनों पर
प्रतिबंध लगाता है। हालाँकि, प्रतिबंध सरकारी दूरसंचार चैनलों
तक ही सीमित है, जहाँ बच्चे अपने कुल टीवी देखने के समय का एक प्रतिशत से भी कम समय व्यतीत
करते हैं।
इस प्रकार का आक्रामक विज्ञापन अब
स्थायी और सर्वव्यापी हो गया है। बाजार में वस्तुओं की कीमतें उत्पाद के लिए
आवश्यक श्रम और पूंजी की मात्रा से संबंधित नहीं हैं। बल्कि वह अब उत्पादक कितने
माल को बिक्री के लिए बाजार में रख सकते हैं इससे तय होती है। खाद्य पदार्थ नश्वर
(perishable) होने वाले होते हैं और उन्हें
तुरंत निपटाने की आवश्यकता होती है। तो सुपरमार्केट की ये स्थायी छूट अन्न के
अतिउत्पादन और अन्न की बर्बादी के दूसरे पक्ष की ओर इशारा करती है।
खाद्य अपव्यय विरोधी कानून
२०१६ में, फ्रांसीसी सरकार ने घोषणा की कि २०२५ तक खाद्य अपव्यय को आधा कर दिया जाएगा।
विशेष रूप से बड़े सुपरमार्केट को अपने बिना बिके उत्पादों को नष्ट किए बिना
सामाजिक संगठनों को दान करने के लिए मजबूर होना पड़ा। दूसरी ओर, निजी संपत्ति की रक्षा
के बहाने, सुपरमार्केट के कार
पार्क में कूड़ेदान से खाना लेना अभी भी मना है! हालाँकि, २०१५ से जो उत्पादन
निश्वासित (expired) हो चुके है उन्हें
उठाना चोरी नहीं माना जाता है। यह सब स्पष्ट रूप से इस मुद्दे पर कानून की कायरता
को दर्शाता है।
खाद्य अपव्यय के खिलाफ लड़ाई को
राजनीतिक और सामाजिक प्राथमिकता का विषय बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
[1] https://www.monde-diplomatique.fr/2021/09/ELIE/63446
[2] Selon les sondages Nielsen et
Ipsos.
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